आज फिर
आज फिर
मन को छू गई
तुम्हारी याद
आंसू बन आँख से बह
गई
तुम्हारी कही कोई
बात
आज फिर
भूले बिसरे चित्रों
ने मुझ को घेर लिया
संग बिताई घड़ियों ने
दर्द भरा कोई गीत
छेड़ दिया
पर
डर लगता है मुझको
समय की इस निष्ठुर
चाल से
वो धीरे धीरे निगलता
जा रही है
तुम्हारी हर इक याद
तुम्हारी कही हर इक
बात
दोस्त
अचानक जैसे छोड़ गये
थे तुम
बीच डगर में
डर लगता है
अब छोड़ न जाए वैसे
ही
याद तुम्हारी भी
बीच डगर में.
©आई बी अरोड़ा
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteधन्यवाद श्वेता
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