Thursday, 26 February 2015

अपनी ही सुनते
शब्द हैं कुछ ठहरे ठहरे,
कान भी तो हैं
पर बहरे बहरे,
हाथ हैं कुछ ठिठुरे ठिठुरे,
दिल भी तो हैं
पर सिकुड़े सिकुड़े,
जो हम कहते
वही हम सुनते,
अपना ही बस
हम ताना बुनते,
तुम हो
या फिर ना भी हो,
इसका कोई सार नहीं,
व्यथा तुम्हारी
नीरस गीत
जिसमें कोई राग नहीं,  
आंसू तुम्हारे
बस पानी खारा,
निष्फल बहने देते
हम यह धारा,
अपने हृदय की व्यथा
हम सुनते,
अपनी पलकों के
मोती हम चुनते,
हम बस
अपनी ही कहते,
हम बस
अपनी ही सुनते.

©आई बी अरोड़ा 

2 comments:

  1. आंसू तुम्हारे
    बस पानी खारा,
    निष्फल बहने देते
    हम यह धारा,
    अपने हृदय की व्यथा
    हम सुनते,
    अपनी पलकों के
    मोती हम चुनते,
    हम बस
    अपनी ही कहते,
    हम बस
    अपनी ही सुनते.
    सुन्दर भावोक्ति

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  2. "कौन रोता है किसी और की खातिर ऐ दोस्त सबको अपनी ही अपनी ही किसी बात पे रोना आया"
    धन्यवाद योगी.

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