Thursday 4 September 2014

रंग ले आये
सुनो,
रुको/सुनो,
सड़क पर, गली में, नाली के अंदर
बहता यह लहू
अगर तुमको दिखाई नहीं देता
तो इस लहू का ही दोष होगा,
शायद यह लहू रंगहीन होगा.
पर देख सकते हो तो देख लो
यह छलनी सीना
यह कुचली देह
यह फूटा सिर.
रुको और देख लो,
यह सब अभी इसी पल,
कौन जाने कब किस पल
ऐसा ही कुछ
तुम्हारे साथ भी घट जाये.
तुम्हें बहता लहू दिखाई नहीं देता
लहू से सने हाथ दिखाई नहीं देते
अँधेरे को चीरती चीखें सुनाई नहीं देतीं
तो यह तुम्हारा भ्रम ही है
क्योंकि यह सब यहीं हैं
जैसे मृत्यु यहीं है
यह सब तुम्हारी ओर बढ़ रही हैं
जैसे मृत्यु तुम्हारी ओर बढ़ रही है,
हर पल, हर क्षण.
सुनो,
कोई चिल्लाया
शायद किसी कंस ने
किसी बालकृष्ण को मार गिराया.
सहमो मत
सहमा हुआ व्यक्ति
बहुत धीरे मरता है
और एक दुखदायी मौत ही मरता है.
रुको और लौट आओ,  
लौट आओ
और भिगो लो अपने हाथ
इस बहते लहू में
अभी इसी क्षण.
फिर शायद
तुम भयभीत न रहो
फिर शायद
तुम्हें दिख जाये
बहता लहू
लहू से सने हाथ
हाथ में खंजर .
फिर शायद
तुम्हारे हाथों में
जुम्बिश आ जाये
और तुम्हारा लहू
सड़क पर, गली में, नाली के अंदर
बहते इस बैरंग लहू में
रंग ले आये.   
(कई वर्ष पुरानी घटना है. एक पत्रकार और उसकी पत्नी को किसी राजनेता के गुंडों ने पीछा कर मारा और अंततः उनकी हत्या कर दी. लोग बस चुपचाप देखते रहे. कोई उनकी सहायता के लिए आगे न आया. उस घटना के वर्णन ने मुझे बहुत प्रभावित किया था और मैंने यह कविता लिखने का प्रयास किया था. ऐसी घटनायें लगातार घट रही हैं कल भी कहीं कुछ ऐसा ही हुआ है पर हम कुछ सुन देख नहीं पा रहे)
© आई बी अरोड़ा

2 comments:

  1. कोई चिल्लाया
    शायद किसी कंस ने
    किसी बालकृष्ण को मार गिराया.
    सहमो मत
    सहमा हुआ व्यक्ति
    बहुत धीरे मरता है
    और एक दुखदायी मौत ही मरता है.
    रुको और लौट आओ,
    लौट आओ
    और भिगो लो अपने हाथ
    इस बहते लहू में
    अभी इसी क्षण.
    फिर शायद
    तुम भयभीत न रहो
    फिर शायद
    तुम्हें दिख जाये
    बहता लहू
    ​एकदम बढ़िया

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